जाट
सर्वखाप पंचायतों का ऐतिहासिक महत्त्व- Ahlawat Khap
महाराजा हर्षवर्धन (थानेसर के राजा) ने अपनी बहन राज्यश्री को मालवा नरेश की कैद से छुड़ाने में खाप पंचायत कीसहायता मांगी थी जिसके लिए खापों के चौधरियों ने मालवा पर चढाई करने के लिए हर्ष की और से युद्ध करने के लिए३०००० मल्ल और १०००० वीर महिलाओं की सेना भेजी थी. खाप की सेना ने राज्यश्री को मुक्त कराकर ही दम लिया.
महाराजा हर्षवर्धन ने सन ६४३ में जाट क्षत्रियों को एकजुट करने के लिए कन्नौज शहर में विशाल सम्मलेन कराया था वहसर्वखाप पंचायत ही थी जिसका नाम ‘हरियाणा सर्वखाप पंचायत‘ रखा गया था चूँकि उन दिनों विशाल हरियाणा उत्तर मेंसतलज नदी तक, पूर्व में देहरादून, बरेली, मैनपुरी तथा तराई एरिया तक, दक्षिण में चम्बल नदी तक और पश्चिम मेंगंगानगर तक फैला हुआ था. सर्वखाप के चार केंद्र थानेसर, दिल्ली, रोहतक और कन्नौज बनाये गए थे. इस सर्वखापपंचायत में करीब ३०० छोटी-बड़ी पालें, खाप और संगठन शामिल थे. पंचायत ने थानेसर सम्राट हर्षवर्धन का कनौज केराजा के रूप में राज्याभिषेक किया. सम्राट हर्ष ने वैदिक विधि विधान से सर्वखाप पंचायत का गठन किया. इससे पूर्वविभिन्न खापों के विभिन्न स्वरुप, संविधान और कार्य करने के तौर तरीके अलग-अलग थे.
सन ६६४ ई. में बगदाद के खलीफा ने अब्दुल्ला नामक सरदार के साथ ३५ हजार सेना भेजकर सिंध पर चढाई की. सिंध केराजा दाहिर द्वारा सहायता मांगे जाने पर पंचायत ने सेना भेजी जिसमें दाहिर के पुत्र जस्सा को प्रधान सेनापति, मोहना जाटको सेनापति तथा भानु गुज्जर को उपसेनापति नियुक्त किया गया. भयंकर युद्ध में मोहना जाट ने अब्दुल्ला को ढाक परचढाकर जमीन पर पटका और मार दिया. अब्दुल्ला की २७००० सेना मारी गई , बाकी ८००० सिंध नदी में डूब गए क्योंकिजाटों ने पहले से ही पार ले जाने वाली नाओं पर कब्जा कर रखा था. खलीफा ने थोड़े थोड़े अंतराल से चार बार आक्रमणकिये पर हर बार पंचायत सेना ने उसे मार भगाया. सन ११९१ में मोहम्मद गौरी का सामना करने के लिए सर्वखाप पंचायत ने२२००० जाट मल्ल वीरों को दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ने भेजा था. दिल्ली सम्राट ने सर्वखाप पंचायत सेसहायता मांगी थी. सर्वखाप पंचायत में १०८ राजाओं ने दिल्ली सम्राट के नेतृत्व में गौरी से लड़ने का फतवा जारी किया गयाथा. इस पंचायती और सम्राट की संयुक्त सेना के सामने गौरी की सेना नहीं टिक सकी और मैदान छोड़कर गौरी की सेना कोभागना पड़ा. मगर अगले ही वर्ष ११९२ में गौरी ने पुनः आक्रमण किया और विजयी रहा.
खाप पंचायतों ने नव स्थापित दास वंस के खिलाफ अपना विरोध लम्बे समय तक जारी रखा और मोका पाते ही वह विद्रोहकरके इनका शासन समाप्त करने के प्रयास करते रहे
सन ११९३ ई. में दिल्ली के बादशाह कुतुबुदीन ऐबक के साथ सर्वखाप पंचायत की सेना ने जाटवान के नेतृत्व में १२ वीं सदीका सबसे भयंकर युद्ध हांसी में लड़ा गया. इस युद्ध को मुस्लिम लेखक भी भयंकर मानते हैं. इसमें जाट वीरों ने अपनेपरंपरागत हथियारों यथा लाठी, बल्लम, कुल्हाडी, गंडासी, भाला, बरछी, जेळी, कटार आदि से अंतिम दम तक शाहीसैनिकों को कत्ल किया. युद्ध कई दिन चला और जाटवान सहित अधिकतर मल्ल योद्धा शहीद हुए. जीत ऐबक की हुईपरन्तु कहते हैं वह अपनी आधी सेना के शवों को देखकर दहाड़-दहाड़ कर रोया और रोते हुए उसने कहा कि मुझे पता होताकि जाट इतने लड़ाकू होते हैं तो वह उनसे भूलकर भी न लड़ता, जाटवान जैसे योधाओं को अपने साथ करके मैं सारी धरतीजीत सकता था. इतिहासकार लिखते हैं कि यह पहला अवसर था जब जीतने के बाद भी कोई मुस्लिम शासक रोते हुएदिल्ली लौटा और उसने जस्न की जगह मातम मनाया. इस युद्ध से स्पस्ट हो जाता है कि सर्व खाप पंचायत उस समय भीअपना काम कर रही थी तथा गोपनीय स्थलों, जंगलों, बीहडों में इसकी पंचायत होती थी.
सन ११९७ ई. में राजा भीम देव की अध्यक्षता में बावली बडौत के बीच विशाल बणी में सर्वखाप पंचायत की बैठक हुई थीजिसमें बादशाह द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाने तथा फसल न होने पर पशुओं को हांक ले जाने के फरमानों कामुँहतोड़ जवाब देने के लिए ठोस कार्रवाई करने पर विचार किया गया. इस पंचायत में करीब १००००० लोगों ने भाग लिया.पंचायती फैसले के अनुसार सर्वखाप की मल्ल सेना ने शाही सेना को घेर कर हथियार छीन लिए और दिल्ली पर चढाईकरने का एलान किया. बादशाह ने घबराकर दोनों फरमान वापिस लेकर पंचायत से समझौता कर लिया.
सन १२११ ई. और १२३६ ई में गुलाम वंश का सुलतान इल्तुतमिश दो बार सर्वखाप की सेना से हारा था. हारने के बाद उसेसर्वखाप की ८ शर्तों को स्वीकार करना पड़ा था. ये शर्तें थी: पंचायतो को अपने निर्णय स्वयं करने का अधिकार, पंचायतको सेना रखने का अधिकार, पंचायतो को पूर्ण स्वतंत्रता देना, हिन्दुओं को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता देना , जजिया कर कीसमाप्ति, और दरबार में पंचायत को प्रतिनिधित्व देना. इससे स्पस्ट है कि १३ वीं सदी में सर्वखाप पंचायतें इस स्थिति में थीकि वे सरकार से अपनी बात मनवा लेती. पंचायत सेना भी इतनी शक्तिशाली थी कि शाही सेना को कई बार हराया था.
सन १२३७ ई. ‘ में दिल्ली तख्त पर आसीन रजिया बेगम घरेलू झगडों से परेसान हो गई थी. अमीर उसकी हत्या करना चाहतेथे. जब कोई रास्ता न बचा तो रजिया सुल्ताना ने तत्कालीन सर्वखाप पंचायत के चौधरी को सहायता के लिए पुकारा. इसप्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक गुप्त स्थान पर आयोजन हुआ जिसमें पंचायती सेना द्वारा रजिया सुल्ताना का साथ देनेका फैसला लिया गया.पंचायती सेना ने अचानक दिल्ली पर धावा बोलकर रजिया सुल्ताना के विरोधियों को कुचल डाला.रजिया ने खुश होकर पंचायती मल्ल योद्धाओं के लिए ६०००० दुधारू पशु उपहार में दिए.
सन १२४६ से १२६६ ई. में गुलाम वंशी नासिरुद्दीन ने शासन किया. उसके विरोधियों की संख्या कम न थी.जब उसे लगा किउसकी गद्दी कभी भी छिन सकती है तो उसने अपने भतीजे को सहायता के लिए सर्वखाप के मुख्यालय सौरम(मुज़फ्फरनगर) भेजा. इस मांग पर खापों के चौधरियों ने कई दिन तक विचार किया. अंत में नासिरुद्दीन को अपनी कुछ मांगेंमानने का प्रस्तान उसके भतीजे के साथ भेजा. नासिरुद्दीन ने पंचायत की सभी मांगे मानली और बदले में पंचायत की सेना नेनसीरुद्दीन के विरोधियों को नष्ट कर उसे निष्कंटक बना दिया.
सन १२८७ ई. में महानदी के तट पर सर्वखाप की एक विशाल पंचायत हुई जिसकी अध्यक्षता चौधरी मस्त पाल सिरोहा नेकी. इस पंचायत में ६०००० जाट, २५००० अहीर, ४०००० गुर्जर, ३८००० राजपूत, तथा ५००० सैनिकों ने भाग लिया. इसपंचायत में कुछ प्रस्ताव पास किये गए जैसे २५००० व्यक्ति हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहेंगे, १८ से ४० वर्ष के बीच के लोगशाही सेना से लड़ने का प्रशिक्षण लें, जजिया कर बिलकुल नहीं देंगे, शादी-विवाहों में शाही हुक्म नहीं मानेंगे और अपनीपरंपरागत शैली ही अपनाएंगे, फसल का आधा भाग कर के रूप में जमा नहीं करेंगे, पंचायत अपने निर्णय स्वयं लेगी आदि.इस पंचायत में यह स्पस्ट होता है कि सर्वखाप पंचायत एक सर्वजातीय संगठन था.
सन १३०५ में चैत्रबदी दूज को सोरम (मुजफ्फरनगर) में एक विशाल सर्वखाप पंचायत हुई थी जिसमें सभी खापों के ४५०००प्रमुखों ने भाग लिया था तथा राव राम राणा को सर्वखाप पंचायत का महामंत्री नियुक्त किया गया था तथा गाँव सौरम कोवजीर खाप का पद प्रदान किया था. इसी पंचायत में ८४ गांवों की बालियान खाप को प्रमुख खाप के रूप में स्वीकार कियागया. यदि इस पंचायत के आयोजन पर गहन विचार करें तो यह स्पस्ट हो जाता है कि तत्कालीन हरियाणा का क्षेत्र काफीविस्तृत था जिसमें सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश समाहित था.
सन १२९५ में अलाउद्दीन खिलजी ने पंचायत को कुचलने के लिए अपने एक सेनापति मलिक काफूर को २५००० की सेनालेकर वर्तमान पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य इलाके में भेजा. हिंडन और काली नदियों के संगम पर अर्थात बरनावा गाँवके आस-पास सर्वखाप के मल्ल वीरों और खिलजी की सेना के बीच भयानक युद्ध हुआ. अधिकतर मुस्लिम सैनिक काटडाले गए, जो बचे वे अपने सेनापति सहित मैदान छोड़कर भाग गए. पंचायती फैसले के अनुसार इस युद्ध में खिलजी सेना सेलड़ने हर घर से एक योद्धा ने भाग लिया था.
सन १३१९ ई. में मुबारकशाह खिलजी के सेनापति जाफ़र अली ने बैशाखी की अमावश्या के दिन कोताना (बडौत के निकट)यमुना नदी में कुछ हिन्दू ललनाओं को स्नान करते देखा तो उसकी कामवासना भड़क उठी. उसने हिन्दू बालाओं को घेर करपकड़ने का प्रयास किया तो बालाओं ने डटकर मुकाबला किया. आस-पास के लोग भी सैनिकों से जा भिडे. भारी मारकाटमची. इस बात की खबर सर्वखाप पंचायत को लगने पर पंचायती मल्लों को जाफर अली को सबक सिखाने भेजा. बतायाजाता है कि इससे पहले ही एक हिन्दू ललना ने जाफ़र का सर काट दिया था. बीस कोस तक पंचायती मल्लों ने बाकी बचेकामांध सैनिकों का पीछा किया और इन्हें कत्ल कर दिया. बादशाह ने अंत में इस घटना के लिए पंचायत से लिखित मेंमाफ़ी मांगी.
दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के किनारे १३३६ से १५९६ ई. तक हिन्दुओं का विजयनगर नामक राज्य रहा है. इस राज्य केलोगों को निकटवर्ती मुस्लिम शासक बहुत तंग करते थे. विजयनगर के राजा देव राज II ने सर्वखाप पंचायत से लिखित मेंमांग की कि सर्वखाप पंचायत कुछ मल्ल यौद्धा भेजे जो वहां प्रशिक्षण दें और शत्रुओं से उनकी रक्षा करें. सर्वखाप पंचायतने विचार कर १००० योद्धाओं को विजयनगर भेजा. वहां पहुँच कर इन योद्धाओं ने हिन्दुओं को अभय दान देने के साथ-साथगाँव-गाँव में अखाड़े चालू करवाए. शत्रुओं को पछाड़ कर मार डाला. वहां जाने वाले मल्ल योद्धाओं में प्रमुख थे शंकर देवजाट, शीतल चंद रोड, चंडी राव रवा, ओझाराम बढ़ई जांगडा, ऋपल देव जाट, शिव दयाल गुजर . यह घटना सर्वखाप कीशक्ति और सरंचनाओं पर प्रकाश डालती है.
सन १३९८ में तैमूर लंग ने जब ढाई लाख सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया तो पंचायती सेना ने उसकी आधी सेना कोकाटकर यमुना, कृष्ण, हिंडन, और काली नदी में फेंक दिया था. तैमूर लंग को रोकने के लिए बेरोगोलिया, बादली,सिसौली तथा सैदपुर में चार सर्वखाप पंचायतें हुई. इसके बाद सर्वखाप की सामूहिक पंचायत चौगामा के गांवों, निरपड़ा,दाहा,दोघट, टीकरी के बीच २२५ बीघे वाले विशाल बाग में हुई जिसकी अध्यक्षता निरपड़ा गाँव के यौद्धा देव पाल राणा नेकी. इस महापंचायत ने अस्सी हजार वीरों को चुना गया जिनमें किसी का भी वजन दो कुंतल से कम न था. पंचायती सेनाका सेनापति ४५ वर्षीय पहलवान योगराज जाट को चुना. ४०००० वीरांगनाओं को भी चुना गया. ५०० घुड़ सवारों की गुप्तसेना बनाई. हिसार के गाँव कोसी के पहलवान धोला को उपसेनापति बनाया. युद्ध के पहले ही दिन उस क्षेत्र से गुजर रहेतैमुर लंग के करीब एक लाख साठ हजार सैनिक मौत के घाट उतारे गए. पंचायती सेना के भी ३८ सेनापति और ३५०००मल्ल तथा वीरांगनाएँ काम आई. तैमूर मरते मरते बचा और बिना रुके घबरा कर जम्मू के रास्ते स्वदेश लौट गया. इससेपहले उसने जी भर कर दिल्ली को लूटा था परन्तु पंचायती मल्लों ने उससे दिल्ली से लूटी गई पाई-पाई को छीन लिया तथाहजारों युवतियों को उसकी कैद से छुडाया. यदि एक दिन तैमूर और रुक जाता तो वह और उसकी सेना को पंचायती सेनासदा के लिए गंगा-यमुना के मैदान में दफ़न कर देती.
सन १४२१ में मेवाड़ के राणा लाखा ने ५० वर्ष की आयु में मारवाड़ के राजा रणमल की १२ वर्षीय कन्या से विवाह कियाजिससे मोकल नमक पुत्र पैदा हुआ. मोकल जब ५ वर्ष का था तो राणा लाखा चल बसे. उसकी सहायता के लिए मोकल केनाना और मामा जोधा चितोड़ में आकर बस गए. उन्होंने सत्ता की चाह में मोकल को मार डालने का सड़यंत्र रचा तथा पड़ौसीराजपूत राजाओं से सौदाबाजी करली. मोकल की माता को जब और कोई सहारा नजर नहीं आया तो सर्वखाप को दूत भेजकर सहायता मांगी. पंचायत ने तुंरत सहायता के लिए मल्ल वीरों को मेवाड़ भेजा. वहां पहुँच कर पंचायती मल्ल योद्धाओं नेराजमहल को घेर लिया. राजमाता और राजकुमार मोकल को सुरक्षित निकाल कर विद्रोहियों को मार डाला. उस समयबहुत से जाट वहीँ बस गए जिनके वंसज आज वहां शान से रहते हैं.
सन १४९० में दिल्ली पर सिकंदर लोदी का शासन था. उसने प्रजा पर राजस्व कर बढा दिए और हिन्दुओं पर जजिया करलगा दिया. किसानों की हालत ख़राब हो गई और हाहाकार मच गया. लोदी के आतंक के विरुद्ध सर्वखाप पंचायत केनेतृत्व में किसानों की महा पंचायत हुई. पंचायत ने दिल्ली को घेरने का संकल्प लिया. दिल्ली में जब लोदी को पता लगाकि सर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धा दिल्ली के लिए कूच कर गए हैं तो सुलतान डर गया. वह सर्वखाप पंचायत केमुख्यालय सौरम गया और पंचायत से समझौता कर लिया तथा ५०० अशर्फियाँ भी पंचायत को भेंट की, बदले में पंचायतने अपनी सेना वापिस बुला ली.
सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद उसका लड़का इब्राहीम लोदी गद्दी पर बैठा, परन्तु उसके छोटे भाई जलालुद्दीन ने विद्रोह करदिया. इब्राहीम लोदी ने सर्वखाप पंचायत की सहायता मांगी. सर्वखाप के मल्ल योद्धाओं ने जलालुद्दीन और उसके हजारोंसैनिकों को रमाला (बागपत) के जंगलों में घेर लिया और आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया.
सन १५०८ में राणा सांगा चितौड़ की गद्दी पर बैठा. उसने अपने जीवन काल में ६० युद्ध लड़े परन्तु जब बाबर विशाल सेनालेकर चितौड़ की और बढा तब राणा सांगा ने सर्वखाप पंचायत से सहायता मांगी. पंचायत ने राणा सांगा के पक्ष में युद्धकरने का निर्णय लिया. कनवाह के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ. राणा सांगा घायल होकर अचेत होने लगे तो पास ही लड़ रहेसर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धा कीर्तिमल ने राणा का ताज उतार कर स्वयं पहन लिया और राणा सांगा को सुरक्षित युद्धक्षेत्र से बहार निकाला. बाबर की सेना ताज देखकर राणा सांगा समझती रही. अंततः कीर्तिमल शहीद हो गए. राजपूतराणा को बचाकर एक बार फिर सर्वखाप पंचायत की श्रेष्ठता सिद्ध कर दिखाई.
बाबर और सर्वखाप पंचायत में मनमुटाव चलता रहा. अंत में १५२८ में बाबर स्वयं गाँव सौरम गया तथा तत्कालीन सर्वखापपंचायत चौधरी रामराय से संधि कर ली और चौधरी को एक रूपया तथा पगड़ी सम्मान के १२५ रपये देकर सम्मानित किया.
सन १५४० में बादशाह हुमायूं का सर्वखाप पंचायत ने साथ नहीं दिया. इस टकराव का शेरशाह ने भरपूर फायदा उठाया.शेरशाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और हुमायूं को अफगानिस्तान तक दौड़ाकर मुल्क से खदेड़ दिया. शेरशाह ने गद्दीपर बैठते ही किसानों को तंग करना शुरू कर दिया तथा सर्वखाप की एक न मानी. उधर इरान पहुँच कर हुमायूँ को सर्वखापपंचायत की याद आई. उसने अपना दूत भेजकर सर्वखाप पंचायत से सहायता मांगी. सर्वखाप पंचायत ने इस शर्त परसहायत दी कि गद्दी पर बैठने पर वह सर्वखाप की सभी मांगे स्वीकार कर लेंगे. हुमायूँ ने शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारीसिकंदरशाह सूरी को खाप पंचायत की मदद से सरहिंद के युद्ध में हराकर दिल्ली पर फिर अधिकार कर लिया (जून , १५५५) और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई .
बादशाह अकबर के जमाने में सर्वखाप पंचायत का पुनर्गठन किया गया. अकबर के समय पंचायत के १० मंत्री चुने गए थे.चौधरी पच्चुमल को अकबर बादशाह ने मंत्री के रूप में मान्यता दी थी. अन्य मान्यता प्राप्त मंत्री थे – चौधरी भानी राम, हरीराम, टेकचंद, किशन राम, श्योलाल, गुलाब सिंह, सांई राम, और सूरज मल. यह मान्यता बादशाह मुहम्मदशाह के जमानेअर्थात १७४८ तक चलती रही. मुग़लों ने सर्वखाप पंचायत के साथ समझौता नीति को अधिक अपनाया. मुग़ल काल मेंसर्वखाप पंचायत का आयोजन होता रहा तथा पंचायत के नेताओं ने अनेक कुर्बानियां दी थी और इस बेमिसाल पंचायतव्यवस्था को बनाये रखा.
सन १६२८ में शाहजहाँ ने किसान-मजदूरों के प्रति कठोर निति अपनाई. सर्वखाप पंचायत ने इसका विरोध कियाम शाहीखजानों और चौकियों पर हमला किया. शाहजहाँ ने दो सेनापतियों आमेर (वर्तमान जयपुर) के मिर्जा राजा जयसिंह औरकासिम खान को विद्रोह दबाने के लिए भेजा. पंचायती सेना ने इन दोनों को घेर लिया और तभी छोड़ा जब शाहजहाँ नेअपना किसान विरोधी फरमान वापस लिया. सन १६३५ में शाहजहाँ ने फिर किसानों पर भारी कर लगा दिए. सर्वखापपंचायत ने लगान के रूप में कर न देने का फैसला किया. आगरा, मथुरा, गोकुल, महावन, पहाडी, मुहाल, खोह आदि मेंमेव, गुर्जर, राजपूत, और जाट एक हो गए. शाही सेना से टकराव चलता रहा मगर बादशाह पंचायत विरोध को दबा नसका. और समझौता करना पड़ा.
सन १६६० में ठेनुआ गोत्र के जाट नन्द राम नें सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया तथा स्वयं ही उसकी अध्यक्षता की.औरंगजेब ने धर्म परिवर्तन के लिए अनेक तरीके अपनाए. किसानों पर भारी कर लगाये, हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया,हिन्दुओं के त्योहारों और मेलों पर रोक लगादी. नन्द राम ने जनसमर्थन से अलीगढ, मुरसान, हाथरस, और मथुरा पर अपनीछापामार शैली से कब्जा कर लिया. औरंगजेब कुछ नहीं कर सका और अंत में नन्द राम को फौजदार की उपाधि देकरसमझौता कर लिया.
९ अप्रेल १६६९ कोऔरंगजेब का नया फरमान आया – “काफ़िरों के मदरसे और मन्दिर गिरा दिए जाएं“. फलत: ब्रज क्षेत्रके कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गया. कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्यधरोहर, तोड़-फोड़, मुंड विहीन, अंग विहीन कर हजारों की संख्या में सर्वत्र छितरा दी गयी. सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलियाघुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे . और दिखाई देते थे धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें- उनमें सेनिकलते हुए साही घुडसवार. हिन्दुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा काफौजदार नियुक्त किया. अब्दुन्नवी ने सिहोरा नामक गाँव को जा घेरा. क्रान्तिकार जाट गोकुलसिंह ने सर्वखाप पंचायत केसहयोग से एक बीस हजारी सेना तैयार कर ली थी. गोकुलसिंह अब्दुन्नवी के सामने जा पहुंचे. मुग़लों पर दुतरफा मार पड़ी.फौजदार गोली प्रहार से मारा गया. बचे खुचे मुग़ल भाग गए. गोकुलसिंह आगे बढ़े और सादाबाद की छावनी को लूटकरआग लगा दी. इसका धुआँ और लपटें इतनी ऊँची उठ गयी कि आगरा और दिल्ली के महलों में झट से दिखाई दे गईं.दिखाई भी क्यों नही देतीं. साम्राज्य के वजीर सादुल्ला खान (शाहजहाँ कालीन) की छावनी का नामोनिशान मिट गया था.मथुरा ही नही, आगरा जिले में से भी शाही झंडे के निशाँ उड़कर आगरा शहर और किले में ढेर हो गए थे. निराश और मृतप्रायहिन्दुओं में जीवन का संचार हुआ. इस युद्ध को दुनिया के भयानक युद्धों में गिना जाता है. इस युद्ध में ५००० जाट शाही सेनाके ५०००० सैनिकों को कत्ल कर जान पर खेल गए. ७००० किसानों को बंदी बनाकर आगरा की कोतवाली के सामनेबेरहमी से कत्ल कर दिया गया. गोकुलसिंह और उनके ताऊ उदयसिंह को सपरिवार बंदी बना लिया गया.अगले दिनगोकुलसिंह और उदयसिंह को आगरा कोतवाली पर लाया गया-उसी तरह बंधे हाथ, गले से पैर तक लोहे में जकड़ा शरीर.गोकुलसिंह की सुडौल भुजा पर जल्लाद का पहला कुल्हाड़ा चला, तो हजारों का जनसमूह हाहाकार कर उठा. कुल्हाड़ी सेछिटकी हुई उनकी दायीं भुजा चबूतरे पर गिरकर फड़कने लगी. परन्तु उस वीर का मुख ही नहीं शरीर भी निष्कंप था. उसनेएक निगाह फुव्वारा बन गए कंधे पर डाली और फ़िर जल्लादों को देखने लगा कि दूसरा वार करें. परन्तु जल्लाद जल्दी मेंनहीं थे. उन्हें ऐसे ही निर्देश थे. दूसरे कुल्हाड़े पर हजारों लोग आर्तनाद कर उठे. उनमें हिंदू और मुसलमान सभी थे. अनेकों नेआँखें बंद करली. अनेक रोते हुए भाग निकले. कोतवाली के चारों ओर मानो प्रलय हो रही थी. एक को दूसरे का होश नहींथा. वातावरण में एक ही ध्वनि थी- “हे राम!…हे रहीम !! इधर आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा मेंकेशवरायजी का मन्दिर! क्रांतिकारियों ने अकबर के मकबरे को नेस्तनाबूद किया
सत्ता की लडाई में दारा शिकोह का साथ देने के कारण औरंगजेब ने बादशाह बनते ही सर्वखाप पंचायत को सबक सिखानेके लिए एक घिनौनी चाल चली. उसने सुलह सफाई के लिए सर्वखाप पंचायत को दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा. सर्वखापने निमंत्रण स्वीकार कर जिन २१ नेताओं को दिल्ली भेजा उनके नाम थे- राव हरिराय, धूम सिंह, फूल सिंह, शीशराम,हरदेवा, राम लाल, बलि राम, माल चंद, हर पाल, नवल सिंह, गंगा राम, चंदू राम, हर सहाय, नेत राम, हर वंश, मन सुख,मूल चंद, हर देवा, राम नारायण, भोला और हरिद्वारी. इनमें एक ब्रह्मण, एक वैश्य, एक सैनी, एक त्यागी, एक गुर्जर, एकखान, एक रोड, तीन राजपूत, और ग्यारह जाट थे. इन २१ नेताओं के सामने औरंगजेब ने धोखा किया और इनके सामनेइस्लाम या मौत में से एक चुनने का हुक्म दिया. दल के मुखिया राव हरिराय ने औरंगजेब से जमकर बहस की तथा कहा किशर्वखाप पंचायत शांति चाहती है वह टकराव नहीं. औरंगजेब ने जिद नहीं छोड़ी तो इन नेताओं ने इस्लाम धर्म स्वीकार करनेसे इनकार कर दिया. परिणाम स्वरुप सन १६७० ई. की कार्तिक कृष्ण दशमी के दिन चांदनी चौक दिल्ली में इन २१ नेताओंको एक साथ फंसी पर लटका दिया गया. जब यह खबर पंचायत के पास पहुंची तो चहुँओर मातम छा गया. इसके बादधर्मान्तरण की आंधी चलने लगी. साथ ही सर्वखाप पंचायत का अस्तित्व खतरे में पड़ गया.
सन १६८५ में सिनसिनी के राजा राम ने मृत प्रायः सर्व खाप सेना में जान डाली. राजा राम के नेतृत्व में एक विशाल सेना तैयारहो गई. पंचायती सेना ने सिकन्दरा को जा घेरा. आस-पास की गढ़ियों में आग लगा दी . सिकन्दरा के मकबरा रक्षक मीरअहमद जान बचाकर भागे. गोकुल सिंह की बर्बर हत्या का बदला लेने पर उतारू क्रांतिकारियों ने अकबर की कब्र खोदकरउसकी हड्डियों को निकालकर सरे आम फूंक डाला. मुग़लों के इस प्रसिद्द मकबरे को नेस्तनाबूद कर क्रन्तिकारी पंचायतीगोकुल सिंह जिंदाबाद के नारे लगते वापिस लौट गए.
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